मैंने इक तसवीर ऐसी

तुम्हें देखनेका बहाना चाहीये, धड़कते दिलको आशियाना चाहीये। ओढ़े जिन्हें बैठे हो तुम, उन ख़ुशियोंका पता ठिकाना चाहीये। बनाई है मैंने इक तसवीर ऐसी, लिखी हो कोई कहानी जैसी। ओठोंपे सज रहा है कोई गीत मगर, गुनगुनाने के लिये बस तेरा नाम चाहीये। खयालोंको बुनती हूँ मैं आजकल, सपनोंमे पाती हूँ तुम्हें हरपल। किसीकी नज़र ना लगे इसलिये, तुम्हें चुरानेकी इक वजह चाहीये।

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