मैं नहीं जी पाऊँगी तुम्हारे बिन

वो मुझे मेहंदी लगे हाथ दिखा कर रोई . में किसी और की हूँ बस इतना बता कर रोई .

उमर भर की जुदाई का ख्याल आया था शायद !! वो मुझे पास अपने देर तक बिठा कर रोई ..

अब के न सही ज़रूर हषर मैं मिलेंगे !! यकजा होने के दिलास दिला कर रोई .

कभी कहती थी के मैं नहीं जी पाऊँगी तुम्हारे बिन !! और आज फिर वो ये बात दोहरा कर रोई !!

मुझ पे इक कुराब का तूफ़ान हो गया है !! जब मेरे सामने मेरे ख़त जला कर रोई !!.

मेरी नफरत और अदावत पिघल गई इक पल में !! वो बे-वफ़ा है तो क्यूँ मुझे रुला कर रोई !!

मुझ से जायदा बिछड़ने का गम उसे था !! वक़्त -ए-रुखसत वो मुझे सिने से लगा कर रोई !!

मैं बेकसूर हु , कुदरत का फैसला है ये !! लिपट के मुझ से बस वो इतना बता कर रोई !!

सब शिकवे मेरे इक पल में बदल गए !! झील सी आँखों में जब आंसू सजा कर रोई .

केसे उस की मोहब्बत पैर शक करें हम !! भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोई!!

आख़री आस भी जब टूटती देखी ऊसने, अपनी डोलीके चिलमनको गिरा कर रोई।

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