मैं कैसे कहूँ जानेमन

मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात ये आँखों की सियाही, ये होंठों का उजाला ये ही हैं मेरे दिन–रात, मैं कैसे कहूँ जानेमन काश तुझको पता हो, तेरे रूख–ए–रौशन से तारे खिले हैं, दीये जले हैं, दिल में मेरे कैसे कैसे महकने लगी हैं वहीं से मेरी रातें जहाँ से हुआ तेरा साथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन पास तेरे आया था मैं तो काँटों पे चलके लेकिन यहाँ तो कदमों के नीचे फर्श बिछ गये गुल के के अब ज़िन्दगानी, है फसलें बहाराँ जो हाथों में रहे तेरा हाथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन

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