इस दिन है महाशिवरात्रि, जानिए आखिर क्यों उन्हें चढ़ाया जाता है धतूरा-भांग

भगवान शिव का महपर्व महाशिवरात्रि 21 फरवरी को है। इस पर्व को भोले के भक्त बहुत धूम धाम से मनाते हैं। ऐसे में आप सभी को यह भी बता दें कि महाकाल की पूजा सबसे आसान मानी जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र, धतूरा और एक लोटे जल से भी खुश किया जा सकता है। इसी वजह से शिवभक्त महाशिवरात्रि के अलावा सामान्य दिन में भी शिव को खुश करने के लिए इन तीन चीजों से शिवलिंग की पूजा जरूर करते हैं। कहा जाता है शिव महापुराण में भगवान शिव को नीलकंठ कहा गया है वह भी इस वजह से क्योंकि उन्होंने सागर मंथन के समय सागर मंथन से उत्पन्न हालाहल विष को पीकर सृष्टि को तबाह होने से बचाया था।

वहीं विष पीने के बाद इसके प्रभाव से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया क्योंकि इन्होंने विष को अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। वहीं उसके बाद विष भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ गया और भोलेनाथ अचेत हो गए। देवी भाग्वत् पुराण में बताया गया है कि इस स्थिति में आदि शक्ति प्रकट हुई और भगवान शिव का उपचार करने के लिए जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने के लिए कहा। उसके बाद भगवान शिव के सिर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव के सिर पर धतूरा, भांग रखा और निरंतर जलाभिषेक किया।

कहा जाता है ऐसा करने से शिव जी के सिर से विष दूर हो गया और इस समय से ही भगवान शिव को धतूरा, भांग और जल चढ़ाया जाने लगा। आपको बता दें कि आयुर्वेद में भांग और धतूरा का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है और शास्त्रों में तो बेल के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है साथ ही यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है इसलिए भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग करते हैं।

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