मैं सेर तो तू सवा-सेर, भ्रष्टाचार की बज रही है उलटी बंसी

संसद के दोनों सदनों में काम नहीं हो रहा है, बस शोर-शराबे के बाद कार्यवाही स्थगित हो जाती है | मध्यप्रदेश में तो इतना हंगामा हुआ की सत्र ही अनिश्चित काल के लिए मुल्तवी कर दिया गया | कांग्रेस जो पिछले चुनावों में देश में और प्रदेश में बुरी तरह हारी थी; अब अपनी ताकत (या अस्तित्व) का अहसास कराने के लिए, लोकसभा, राज्यसभा और म. प्र. विधानसभा; सभी जगह अधिक ही आक्रामकता दिखा रही है |

लेकिन सत्ता पक्ष भी ईंट का जवाब पत्थर से देने की शैली में वार पर वार कर रहा है | मैं सेर तो तू सवा-सेर कहने का स्तर भी वे पार कर चुके हैं; अब तो वे कह रहे हैं- "मैं चोर तो तू डाकू" | तुम हमारे दो भ्रष्ट आचरणों को लेकर नारे लगाएंगे तो हम तुम्हारे आठ उजागर कर देंगे | इसी शैली के साथ हमारे कानून बनाने वाले, नियम-कानून तो क्या, संविधान का भी अपमान कर रहे हैं | कांग्रेस ललित-गेट और व्यापम को लेकर आसमान सर पर उठाये ले रही है; तो भाजपा ने तो उसके खिलाफ कई तोपों के मुंंह खोल दिए हैं |

ललित मोदी, जिनके ट्वीट के कारण यह घमासान शुरू हुआ है ; अब अपने ट्वीटर के तीरों के निशाने पर सुषमा - वसुंधरा को छोड़कर, प्रियंका-रॉबर्ट, पी चिदंबरम और सोनिया गांधी को भी ले रहे हैं | सुषमा ने भी ट्वीटर पर घोषणा की है कि वे उन पर एक आरोपी कांग्रेसी नेता के पासपोर्ट के लिए दबाव डालने वाले बड़े कांग्रेसी नेता का नाम सदन में बतायेगी | उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव रिश्वत लेते हुए, स्टिंग रिकॉर्डिंग में पकड़े गए हैं | अन्य कुछ कांग्रेसी नेताओं जैसे वीरभद्रसिंह, भूपेन्द्रसिंह हुडा आदि के खिलाफ भी ताजा आरोप जड़े गए हैं |

शिवराज को खास निशाना बनाने में लगे दिग्गी राजा पर अब एक महिला कांग्रेस नेता की हत्या में शामिल होने का आरोप तक लग गया है | यानि आरोप-प्रत्यारोप का मुकाबला अब एक-दूसरे के कपडे फाड़ने के स्तर पर पहुँच गया है | अब तो शर्म करके काम चलने दे कांग्रेस ! मुकाबले में भाजपा का पलड़ा अब कांग्रेस से भरी हो गया है; पी. के. थुंगन को तो कोर्ट ने ही दोषी करार दे दिया है | पहले भी कई कांग्रेसी नेता कोर्ट से सजा तक पा चुके हैं |

ऐसे में यदि भाजपा नेता इस लोकोक्ति या कहावत का उल्लेख कर रहे हैं कि, "चलनी कहे सूप से तुझमें तो छेद हैं" तो उंनकी ऐसी टिप्पणी अनुचित नहीं लग रही हैं | ऐसे में यह सोचना व कहना स्वभाविक है कि अब तो कांग्रेस को शर्म करना चाहिए और संसद व विधानसभा की कार्यवाहियों में बाधक नहीं बनाना चाहिए | उन्हें यह क्यों नहीं समझ आ रहा है कि नैतिकता के आधार पर किसीका इस्तीफा मांगने का नैतिक अधिकार उन्हें नहीं रहा | इसके आलावा यह भी सोचने वाली बात है कि भाजपा की जिस वरिष्ठ नेता का इस्तीफा वे मांग रहे हैं; वे सुषमाजी स्वयं सदन में अपनी सफाई देने के लिए शुरू से ही तैयार है; तो उन्हें अपनी बात कहने का मौका तो मिलना ही चाहिए |

सत्र के शुरू में तो कांग्रेस मंत्री व प्रधानमंत्री के बयानों की ही मांग कर रही थी; लेकिन जब उन्हें वे पूरी तरह तैयार मालूम हुए; तो उन्होंने अपनी रणनीति बदलकर इस्तीफों की जिद पकड़ ली | या तो उन्हें लग रहा है कि, सुषमा के बयान से उनके आरोप खोखले साबित हो जायेंगे या वे सोच रहे हैं कि सरकार को परेशानी में डालने का दूसरा मौका उन्हें नहीं मिलेगा | कांग्रेस के लिए सोचने वाली बात यह भी है कि, 'भ्रष्टाचार' का मुद्दा उसके लिए तो कभी मुफीद नहीं हो सकता है | चाहे वह इतनी जल्दी भूल गई हो कि धड़ल्ले से हुए भ्रष्टाचारों के कारण ही उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी; लेकिन अभी जनता नहीं भूली है |

अगले कई सालों तक और नेतृत्व में बड़े परिवर्तनों के बिना यह भुलाया भी नहीं जा सकेगा; क्योंकि उनके नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई केस अभी चल रहे हैं और कई नए-नए उजागर होना जारी हैं | इसलिए कांग्रेस को ऐसे मुद्दों पर शोर मचाना शोभा नहीं देता | वह भी ऐसे समय, जबकि संसद में कई अति-महत्वपूर्ण विधेयक / बिलों पर निर्णय होना देश के लिए बहुत जरुरी है | एक-दूसरे के छेद दिखने कि इस स्पर्धा का एक सकारात्मक पक्ष भी है कि इससे दोनों पक्षों के खोटे सिक्कों के कारनामे उजागर होंगे और वे राजनीती में चलन से बाहर हो जायेंगे; क्योंकि उन्हें कोर्ट या जनता या दोनों ही सजा जरूर देंगे | इसलिए हम आज की राजनैतिक स्थितियों पर अफ़सोस तो करें, लेकिन भविष्य में बेहतर राजनीती को भी सुनिश्चित मानकर आशावाद को ही मजबूत करें | भविष्य में हमारा नेताओं का चयन अधिक सही हो; इसके लिए जरुरी है कि हम फ़िलहाल जो कुछ हो रहा है, उस पर पूरी और पैनी नजर रखें |

हरिप्रकाश 'विसंत'

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