माँ शीतला देती है स्वछता की प्रेरणा

आज के समय में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा के कारण सर्वथा प्रासंगिक है. भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है. स्कन्द पुराण में मां शीतला की अर्चना के लिए शीतलाष्टक का वर्णन है. ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी.

स्कंद पुराण में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है. मां को हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है. हाथ में मार्जनी (झाडू) होने का अर्थ है कि सभी लोगों को सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए. कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है.

यह माना जाता है कि मां शीतला की पूजा करने से देवी प्रसन्ना होती हैं और उनका व्रत करने वाले के शीतलाजनित सभी दोष जैसे दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, नेत्र विकार आदि दूर हो जाते हैं. जब चेचक जैसी भयंकर बीमारी का प्रकोप बहुत ज्यादा था तब उससे बचने के लिए भी मां शीतला का पूजन किया जाता था.

नीम के पत्ते से मिट जाते है सब वास्तु दोष

 

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