माँ लक्ष्मी के पूजन में इन मन्त्रों का जाप वरना नहीं मिलेगा फल

शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी को समर्पित होता है। ऐसे में इस दिन कई मन्त्रों का जाप कर आप माँ लक्ष्मी को खुश कर सकते हैं। अब आज हम आपको बताते हैं माँ लक्ष्मी के मंत्र जो उनकी पूजा के दौरान पढ़े जाने जरुरी है वरना पूजा सम्पन्न नहीं मानी जाती।

माँ लक्ष्मी के मंत्र-

माँ के पूजन के दौरान आसन और खुद को इस मंत्र से शुद्ध करें- ऊं अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥

मां लक्ष्मी का आवाहन करते समय उनकी मूर्ति पर फूल अर्पित करें और इस मंत्र को बोलें:-

आगच्‍छ देव-देवेशि! तेजोमय‍ि महा-लक्ष्‍मी ! क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते ! ।। श्रीलक्ष्‍मी देवीं आवाह्यामि ।।

इस मंत्र का जाप करते हुए फूल चढ़ाये-

नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम् । आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम् ।। ।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि ।।

मां के पैर धोते हुए इस मंत्र को पढ़े-

पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो: ! भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्‍मी ! नमोsस्‍तुते ।। ।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै पाद्यं नम:।।

मां लक्ष्मी को अर्घ्‍य देते हुए इस मंत्र को पढ़ा जाता है-

नमस्‍ते देव-देवेशि ! नमस्‍ते कमल-धारिणि ! नमस्‍ते श्री महालक्ष्‍मी, धनदा देवी ! अर्घ्‍यं गृहाण । गंध-पुष्‍पाक्षतैर्युक्‍तं, फल-द्रव्‍य-समन्वितम् । गृहाण तोयमर्घ्‍यर्थं, परमेश्‍वरि वत्‍सले ! ।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अर्घ्‍यं स्‍वाहा ।।

गंगासरस्‍वतीरेवापयोष्‍णीनर्मदाजलै: । स्‍नापितासी मय देवी तथा शांतिं कुरुष्‍व मे ।। आदित्‍यवर्णे तपसोsधिजातो वनस्‍पतिस्‍तव वृक्षोsथ बिल्‍व: । तस्‍य फलानि तपसा नुदन्‍तु मायान्‍तरायश्र्च ब्रह्मा अलक्ष्‍मी: । ।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै जलस्‍नानं समर्पयामि ।।

माँ को वस्त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र को पढ़े- दिव्‍याम्‍बरं नूतनं हि क्षौमं त्‍वतिमनोहरम् । दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।। उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतो सुराष्‍ट्रेsस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे । ।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै वस्‍त्रं समर्पयामि ।।

माँ को आभूषण अर्पित करते हुए इस मंत्र को पढ़े- रत्‍नकंकड़ वैदूर्यमुक्‍ताहारयुतानि च । सुप्रसन्‍नेन मनसा दत्तानि स्‍वीकुरुष्‍व मे ।। क्षुप्तिपपासामालां ज्‍येष्‍ठामलक्ष्‍मीं नाशयाम्‍यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वात्रिर्णद मे ग्रहात् ।। ।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै आभूषणानि समर्पयामि ।।

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