माँ कीआँखों का तारा थी

माँ कीआँखों का तारा थी, पर हो गई आज पराई। लाड़ प्यार से पाला पोसा, और कर दी मेरी विदाई। मैया-बाबुल, भाई -बहना, ये सब अब पीछे छूटेंगे। नई जगह नये लोग मिलेंगे, नव प्यार के अंकुर फूटेंगे। कल तक जोकुछ मेरा था, सब छूट जायेगा पलभर में। जैसे कोई पीला पत्ता, टहनी से टूटे पतझर में। इस आंगन में पापा मेंने, ठुमक ठुमक चलना सीखा। गिर कर फिर उठना सीखा, किलकारी भरना सीखा। खेली यहाँ मैं छुपम छुपाई मिलकर सब बहनें व भाई । साँप-सीढ़ी व लूडो खेली, खेली बन कर चोर सिपाई। इस आंगन की याद नहीं, मेरे मन से मिट पायेंगी। कितनी ही बातें मैके की, मुझे याद बहुत ही आयेंगी। आँसू हैं मेरी आँखों में, और भविष्य के सपने भी। अजीब द्वंद छिड़े हैं मन में, कुछ अनजाने से,अपने भी। जिनको अपना कहती थी, सब कोई मुझसे दूर हुआ।  अनजान और अजनबी से, अब मेरा रिश्ता जोड़ दिया। वहाँ नया जन्म होगा मेरा, अब नई चुनौतियां आयेंगी। बचपन की जो आदत थीं, सब यहीं धरी रह जायेंगीं। मम्मी तुम चिंता मत करना, अब मैं नई तरह से सोचुंगी। अपनी ससुराल में जाकर, ऐक पौध प्यार की रोपुंगी। जो मुझको शिक्षा दी तुमने, अब मेरे काम वह आयेगी। हर मुश्किलमें तुम्हारी बातें, मुझे सही राह दिखलायेगी। गृहणी से जोभी अपेक्षा हैं, मैं सदैव ध्यान में रखुंगी। सास ससुर मेरे संरक्षक हैं, उनका सम्मान न भूलुंगी। वे नहीं जायेंगे वृद्धाश्रम, उनको सब सुविधायें दूँगी। चरण वंदना करके उनकी, कष्ट सभी मैं हर लूंगी। पति के भाई-बहन की भी,  मुझसे कुछ होंगी आशायें। उनको भी खुश रखुंगी मैं, हों चाहे कितनीभी बाधाएं। मैं जीवनसाथी से मिलकर, सब बातें साझा कर लूंगी। मिलजुल के काम करुंगी मैं, घर को खुशियों से भर दूंगी।

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