माँ कब से खड़ी पुकार रही

माँ कब से खड़ी पुकार रही  पुत्रो निज कर में शस्त्र गहो सेनापति की आवाज़ हुई  तैयार रहो , तैयार रहो आओ तुम भी दो आज विदा अब क्या अड़चन क्या देरी  लो आज बज उठी रणभेरी . पैंतीस कोटि लडके बच्चे  जिसके बल पर ललकार रहे वह पराधीन बिन निज गृह में  परदेशी की दुत्कार सहे  कह दो अब हमको सहन नहीं मेरी माँ कहलाये चेरी . लो आज बज उठी रणभेरी . जो दूध-दूध कह तड़प गये  दाने दाने को तरस मरे  लाठियाँ-गोलियाँ जो खाईं वे घाव अभी तक बने हरे  उन सबका बदला लेने को अब बाहें फड़क रही मेरी  लो आज बज उठी रणभेरी . अब बढ़े चलो , अब बढ़े चलो  निर्भय हो जग के गान करो  सदियों में अवसर आया है  बलिदानी , अब बलिदान करो फिर माँ का दूध उमड़ आया बहनें देती मंगल-फेरी . लो आज बज उठी रणभेरी . जलने दो जौहर की ज्वाला  अब पहनो केसरिया बाना  आपस का कलह-डाह छोड़ो  तुमको शहीद बनने जाना  जो बिना विजय वापस आये माँ आज शपथ उसको तेरी . लो आज बज उठी रणभेरी 

Related News