दो लाइन की लव शायरियां

 

कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो  उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं।

बस यही दो मसले, जिंदगी भर ना हल हुए,  ना नींद पूरी हुई... ना ख्वाब मुकम्मल हुए।

अजीब सी पहेलियाँ हैं मेरे हाथों की लकीरों में,  लिखा तो है सफ़र मगर मंज़िल का निशान नहीं।

ये शेरो-शायरी सब उसी की मेहरबानी है,  वो कसक जो सीने से आज भी नहीं जाती।

सब कुछ हमें खबर है, नसीहत नाम दीजिए,  क्या होंगे हम खराब, ज़माना खराब है।

कलम के कीड़े हैं हम जब भी मचलते हैं,  खुरदुरे कागज पे रेशमी ख्वाब बुनते हैं।

दो-चार नहीं मुझको... बस एक दिखा दो,  वो शख़्स जो बाहर से भी अन्दर की तरह हो।

सामान बाँध लिया है मैंने भी अब बताओ दोस्त,  वो लोग कहाँ रहते है जो कहीं के नहीं रहते।

इरादे बाँधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ,  कहीं ऐसा न हो जाये, कहीं वैसा न हो जाये।

अभी महफ़िल में चेहरे नादान नज़र आते हैं,  लौ चिरागों की जरा और घटा दी जाये।

शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?  जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।

मैं शब्दों से खेलती हूँ हैरान होते हैं लोग,  करती हूँ हाले दिल बयान तो परेशान होते हैं लोग।

लगता है इतना वक़्त मेरे डूबने में क्यूँ...?  अंदाज़ा मुझ को ख़्वाब की गहराई से हुआ।

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