ललक अब रही नही ए जमाने तेरी हमने हालात पे काबू पाना सीख लिया,,,, परवाह ता उम्र करते रहे उनकी हम घोसलों के तिनके उड़ाना सीख लिया,,,, परवाज़ उड़ानों की क्या कहिये जनाब फ़िक्र धुएं की कालिख बनाना सीख लिया,,, आज तलक डरते थे तुझसे ए जमाने डर के आगे इतिहास बनाना सीख लिया,,,,,,