लब्जों की एक कयामत सजाते हैं

तुम्हारे लिए ख्यालों में लब्जों की एक कयामत सजाते हैं हर रोज शायरियों में रोमानी बातें रूहानी बातें आशिकों की जज्बाती बातें किताबों से ढूढ़ ढूढ़ कर करते है  जेहन में जमाँ फिर भी तुम्हारे रूबरू होते ही खुल जाते हैं जेसे कोई पिंजरे से सारे लफ्ज पंछियों की तरह उड़ जाते हैं तुम एक ऐसा अहसास हो मेरे लिए जिसके दुनियां के सारे लफ्ज कम पड़ जाते हैं

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