मुझे विश्वास नहीं कि भारत को फिर से आपातकाल का सामना नहीं करना पड़ेगा : आडवाणी

नई दिल्ली: देश में 25 जून को इमरजेंसी लागू की गयी थी और इसकी बरसी आने से पहले ही बीजेपी के संस्थापक सीनियर नेता और अब मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ने आपातकाल को लेकर सचेत रहने को कहा है. आडवाणी ने इंटरव्यू के दौरान कहा , 'भारत की राजनीतिक व्यवस्था में आज भी आपातकाल की स्थिति हो सकती है. साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता का निलंबन न हो. वर्तमान समय में संवैधानिक शक्तिया और कानूनी ताकते, अधिकार होने पर भी लोकतंत्र को खतरा है.

आडवाणी ने इंटरव्यू में  कहा, '1975-77 में आपातकाल के बाद के में कई सालो तक इसका हल नहीं निकाल पाया हूं. जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक स्वतंत्रता पुनः निलंबित या समाप्त नहीं की जाएगी. ऐसा कोई उपाय भी नहीं है'.  उन्होंने इस विषय पर कहा , 'यह सच है की यह करना आसान नहीं है. लेकिन भविष्य में ऐसा नहीं होगा, मैं यह नहीं कह पाऊंगा.  सम्भावना है कि मौलिक आजादी में कटौती कर दी जाए.'

जब आडवाणी से पूछा गया कि उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है जिससे हम समझें कि भारत में आपातकाल लगाने की स्थिति है. उन्होंने कहा, 'मुझे राज्य व्यवस्था में अभी ऐसा कोई संकेत नहीं देख रहा जिससे में पूरी तरह आश्वस्त रहूं.  नेतृत्व का भी कोई विशेष प्रभाव नहीं जो इस स्थिति पर कोई स्पष्ट संकेत दे. लोकतंत्र की प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के अन्य सभी पहलुओं में भी खामिया है. आज मैं यह संदेह नहीं व्यक्त कर रहा की राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है लेकिन कुछ कमिया है जिससे में आश्वस्त हु. में विश्वास नहीं करता की आपातकाल की स्थिति फिर से नहीं आएगी.

एक गलती के रूप में इमर्जेंसी के बारे में बात करते हुए आडवाणी ने कहा इंदिरा गांधी और उनकी सरकार के द्वारा इसे बढ़ावा मिला. उन्होंने कहा कि संवैधानिक शक्तिया होने के बाद भी देश में ऐसी स्थिति बनी थी. आडवाणी ने कहा, '2015 के भारत में सशक्त सुरक्षा कवच नहीं हैं.  मुझे लगता है कि आपातकाल एक अन्य आपातकाल से भारत को सुरक्षित कर सकता है. 'जर्मनी में ऐसा हो चूका है.  हिटलर का शासन हिटलरपरस्त प्रवृत्तियों के खिलाफ एक फैलाव था.  इसकी वजह से आज के जर्मनी शायद ब्रिटिश की तुलना में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक है.  आपातकाल के पश्चात  चुनाव हुए और इसमें जिसने आपातकाल लागू किया उसे करारी हार का सामना करना पड़ा. यह भविष्य के शासकों के लिए खतरनाक साबित हुआ जिसने इसे दोहराने की गलती की उसे असफलता का सामना करना पड़ा.

आडवाणी ने कहा, 'आज के समय में निरंकुशता के विरोध में मीडिया के पास बहुत ताकत है.  लेकिन यह लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए एक वास्तविक प्रतिबद्धता है- मुझे यह ज्ञात नहीं है. इसकी जानकारी मुझे नहीं है. सिविल सोसायटी ने आशा की किरण दिखाई है.  हाल ही में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का लाखो लोगो ने साथ दिया.  भारत में लोकतंत्र की गतिशीलता की वजह बेहद सारी संस्थाए है. लेकिन न्यायपालिका की जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण है.

Related News