कुछ करना है, तो डटकर चल। *थोड़ा दुनियां से हटकर चल*। लीक पर तो सभी चल लेते है, *कभी इतिहास को पलटकर चल*। बिना काम के मुकाम कैसा? *बिना मेहनत के, दाम कैसा*? जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल *तो राह में, राही आराम कैसा*? अर्जुन सा, निशाना रख, मन में, *ना कोई बहाना रख*। जो लक्ष्य सामने है, बस उसी पे अपना ठिकाना रख। *सोच मत, साकार कर*, अपने कर्मो से प्यार कर। *मिलेंगा तेरी मेहनत का फल*, किसी और का ना इंतज़ार कर। *जो चले थे अकेले* *उनके पीछे आज मेले हैं*। जो करते रहे इंतज़ार उनकी जिंदगी में आज भी झमेले है!