कुछ अशआर.... 1 मज़हबी मज़दूर सब बैठे हैं इनको काम दो , इसी शहर में एक पुरानी सी इमारत और है । 2 हम ईंट-ईंट को दौलत से लाल कर देते, अगर ज़मीर की चिड़िया हलाल कर देते । 3 दिल ऎसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के जिद ऎसी कि ख़ुद ताज उठा कर नहीं पहना । 4 चमक यूँ ही नहीं आती है ख़ुद्दारी के चेहरे पर अना को हमने दो-दो वक़्त का फाका कराया है। 5 मुनव्वर माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना, जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती । 6 बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है । 7 एक निवाले के लिए मैंने जिसे मार दिया, वह परिन्दा भी कई दिन का भूखा निकला । -मुनव्वर राना