जानिए कहाँ से आया भोलेनाथ के पास त्रिशूल, सांप, डमरू और चंद्रमा

देवो के देव महादेव सभी भगवानों से भोले है इसलिए इन्हें भोले बाबा के नाम से भी जाना जाता है, आमतौर पर जब हम भगवान शिव का स्मरण करते है तो वह अपने पूरी वेशभूषा के साथ नजर आते है, दोस्तों जब भी आप भगवान कि पूजा करते तो उनका अनोखा रूप आँखों के सामने आ जाता है लेकिन जब भी आप उनके स्वरूप के दर्शन करते है तो उनका स्वरुप आकर्षित और मनमोहक दिखाई पड़ता है, आपने कभी सोचा है कि भगवान भोलेनाथ के पास जो त्रिशूल, सांप, डमरू और चंद्रमा दिखाई देते है वह उनके पास कहाँ से आया, तो चलिए जानते है भगवान शिव के बारे में.

भगवान भोलेनाथ का आकर्षण और अदभुद स्वरुप के बारे में पौराणिक कथाओं के अनुसार माना गया है कि पहले धनुष और त्रिशूल का बहुत अधिक प्रचलन था, ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने खुद ही त्रिशूल का आविष्कार किया था मान्यता है कि जब भगवान शिव प्रकट हुए तो रज, तम, सत इन तीनो गुणों के साथ प्रकट हुए थे, यही तीनो गुण भगवान शिव के तीन शूल यानी त्रिशूल बने इन तीनो के बिना सृष्टि का संचालन कठिन था, इसलिए माना जाता है भगवान शिव ने इन तीनो को अपने हाथ में धारण किया था.

शुरुआत में जब माता सरस्वती प्रकट हुई तब उन्होंने अपनी वीणा के स्वर से ध्वनि को जन्म दिया, ये ध्वनि बिना स्वर और संगीत के विहीन थी तब उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाया जिससे ध्वनि से व्याकरण और संगीत से छंद और ताल का जन्म हुआ. भगवान शिव के गले में जो नाग है इस नाग का नाम वासुकी है इन्हीं नागराज के द्वारा समुद्र मंथन संभव हो पाया था. इनकी भक्ति के कारण ही भगवान शिव ने नागलोक का राजा बनाया था और अपने गले में आभूषण के तौर पर धारण किया था.   शिव पुराण के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था, इन सभी कन्याओं में से चंद्रमा विशेष स्नेह रोहिणी से करते थे, इस बात से नाराज होकर सभी कन्याओं ने दक्ष से अपनी व्यथा बताई तो दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया, इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की तपस्या कि और भगवान शिव ने इस तपस्या से प्रसन्न होकर उनके प्राणों की रक्षा की और उन्हें अपने शीष धारण कर लिया, माना जाता है कि दक्ष के श्राप के कारण ही चंद्रमा घटता और बढ़ता रहता है.

 

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