जानिए नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और विधि

साल में 4 बार नवरात्रि पड़ती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन. आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है, नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है. शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग तथा उल्लास की वृद्धि होती है. दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है इसलिए नवरात्रि में देवी की आराधना ही की जाती है तथा देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है. नवरात्रि के 9 दिनों में देवी के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है. इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है तथा समापन 24 अक्टूबर को होगा और 10वें दिन दशहरा मनाया जाता है. 

नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त:- ज्योतिषाचार्य के अनुसार, पंचांग के मुताबिक शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा. ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस वर्ष 48 मिनट ही रहेगा.

घटस्थापना तिथि- रविवार 15 अक्टूबर 2023 घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 मिनट तक

घटस्थापना या कलशस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री:- सप्त धान्य (7 तरह के अनाज), मिट्टी का एक बर्तन, मिट्टी, कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल), पत्ते (आम या अशोक के), सुपारी, जटा वाला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, पुष्प

शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना की विधि:- नवरात्रि के पहले दिन व्रती द्वारा व्रत का संकल्प लिया जाता है. इस दिन लोग अपने सामर्थ्य मुताबिक 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं. संकल्प लेने के पश्चात् मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है तथा इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है. सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले प्रभु श्री गणेश की पूजा का विधान बताया गया है तथा कलश को प्रभु श्री गणेश का रूप माना जाता है इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है. कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें. तत्पश्चात, देवी-देवताओं का आवाहन करें. कलश में सात प्रकार के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजा लें. इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस के चलते अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें. अंत में देवी मां की आरती करें तथाप्रसाद को सभी लोगों में बाट दें. 

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