जाने रुद्राक्ष का रहस्य

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से पूछा – दयानिधान! रुद्राक्ष को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है? रुद्राक्ष की महिमा को आप विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करे

भगवान् एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हो गया. वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था. कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर सका. तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र है. 

वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है. उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है. त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया. अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं. उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए. फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट होये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे.

इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है. ये ही इनके अड़तीस भेद हैं.

रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है

रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. इस माला को धारण करने वाला अपनी पीढ़ियों का उद्धार करता है. रुद्राक्ष के एक सौ चालीस मनकों की माला धारण करने से साहस,पराक्रम और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

रुद्राक्ष है शिवजी का आंसू

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