किस नजर से देखता होगा मुझे

देखता हूॅ मैं उसी का रूप हर इन्‍सान में रोशनी का कारवॉ ठहरा नही सुनसान में मंदिरो और मस्जिदों तक सिर्फ वो सीमित नहीं दूर तक सत्‍ता उसी की देखिये ईमाान में वो न जाने किस नजर से देखता होगा मुझे किन्‍तु मैैं तो खो गया उसकी मधुर मुस्‍कान में जिदगी तक सौंप दी मैने तुम्‍हारे हाथ में  फिर भी रोटी दे रहे हो तुम मुझे एहसान में एक अदना -सा सही पर प्रश्‍न है यह न्‍याय का शिव नहीं मैं फिर कटे क्‍यों जिंदगी विषपान में फूल क्‍या , अब एक पत्‍ता भी नहीं है डाल पर  पेड है फिर भी खडा मधुमास के अरमान में

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