खुद बनाऊँ अपनी पहचान

खेत सुनहरे मन कुछ कह रे देख के तुझको मौसम ठहरे मन तक पहुँचे तन के पहरे कौन सुनेगा चुप ही रह रे अपने दुख को खुद ही सह रे चारोँ ओर हैँ तीर कमान मैँ तन्हा नन्ही सी जान  हँसता गाता एक मकान अपने जीवन का अरमान  मेरा रस्ता है सुनसान  सबकी मंजिल है आसान कौन करेगा ये एहसान  खुद बनाऊँ अपनी पहचान लूँ अब खुद को यूं पहचान "प्राची" कि ये जीवन है एक इम्तहान।।

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