खूबसूरती पर इतराता है

दोस्तों, रहता है...इंसान...किराये की...काया में, . सांसों को रोज़...बेच कर...चुकाता है...किराया, . है औकात तो...बस...मिट्टी की ही जितनी, . बातें तो...महलों और करोड़ों की...कर जाता है, . जल जायेगी...ये काया भी...एक दिन, . फिर भी...इसकी खूबसूरती पर...इतराता है, . पता है...खुद के सहारे तो...श्मशान तक भी...न जा पाएगा, . इसलिए रिश्तों के साथ साथ...ज़माने में...एक नया रिश्ता...दोस्त का...बनता है,

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