खूब खोजा तुम्हे गुलाबो में

जब मिले ना किताबो में खूब खोजा तुम्हे गुलाबो में , तड़प उठा उस वक्त मै जब पानी निकला आँखों में !

क्या कहुँ हाल ए दर्द वो साकी जो तुमने मुझे दिया , मेरा भी यौवन अब भड़क उठा है अपने ही बाँहों में !

ढूंढ ढूंढ कर थक गया तुझे अपने ही गिरे बानो में , तू जालिम निकल गया था दूर तू उस मयखानों में !

प्रीत गजब की चीज है क्या ये अब मैने भी जाना , तेरी पुकार जब आ रही है दूर कहीं से सिर्फ मेरे कानों में !

हो चुका शर्मसार मै तो अपने ही ऊँची पहचानो से , शुरू हो रहा दुर्व्यहार अब तो मेरी उन झूठी शानों से !

गुमसुम फलक एक चिलमन है जमी आसमां के बीच , बोल तू सुहानी क्या दम रक्खा है अब भी आनों में !

दर्द ए मरहम की क्या जरूरत है अब तो पहचानो में , कुमार तो अब लूट चुका है अब अपने ही शानों में !

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