खिलता हुआ कमल हो तुम

दूर तक फैले रेगिस्तान में खिलता हुआ कमल हो तुम जेठ की भरी दोपहरी में मेरे होठों पर जल की शीतल धार हो तुम घने अँधेरो मेरे धुंधलाते मेरे सपनो का जगमगाता हुआ सवेरा हो तुम सफेद बर्फ की चादर में लिपटा उत्साह भरा एहसास हो तुम मेरे डगमगाते कदमों का और  बिखरते हौसलों का "प्राची" मजबूत संबल हो तुम...।।

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