करवा चौथ: पति की दीर्घायु का कामना पर्व

भारत त्योहारों का देश है. यहां कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक पर्व करवा चौथ है, जो विवाहित स्त्रियों द्वारा प्रति वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अपने पति की दीर्घायु और आरोग्यता के लिए मनाया जाता है. इसे करक चतुर्थी भी कहते हैं. वस्तुत: हिन्दू संस्कृति आदर्शों व श्रेष्ठताओं से परिपूर्ण एक ऐसी संस्कृति है‍ जिसमें पारलौकिकता व आध्यात्मिकता की महत्ता है. चूंकि हिन्दू संस्कृति में पति-पत्नी का संबंध सात जन्मों का होता है, इसीलिए व्रत-उपवास, इस जन्म-जन्मांतर के संबंध को प्रगाढ़ बनाते हैं. करवा चौथ पर्व से महिलाओं के पति प्रेम, पारिवारिक सुख-समृद्धि एवं भारतीय नारियों के त्यागमय जीवन के दर्शन होते हैं. करवा चौथ व्रत के संबंध में कई लोककथाएं प्रचलित हैं. करवा चौथ व्रत पालन के महत्व के बारे में कहा गया है -

व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षायाप्नोति दक्षिणाम्। दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते.

अर्थात व्रत से दीक्षा प्राप्त होती है. दीक्षा से दक्षिणा प्राप्त होती है. दक्षिणा से श्रद्धा प्राप्त होती है. श्रद्धा से सत्य की प्राप्ति होती है.

व्रत की परम्परा -

करवा चौथ पर दिन भर भूखी-प्यासी महिलाएं पूरा सोलह-श्रृंगार कर नई दुल्हन की तरह सजती है. इंतजार होता है सिर्फ चांद का. आज सुहागिन सजी है फिर से, फिर से किए सिंगार. चंदा देख रही चंदा में, सजन की सूरत, सजन का प्यार चांद के इंतजार में छत पर टकटकी लगाए बैठीं महिलाएं पति के घर पहुंचने के बाद ही चांद और पति का दर्शन करके व्रत खोलती है.शाम होते ही महिलाएं मिट्टी के करवे से चांद को अर्घ्य देती है. आजकल बदलते दौर में करवा चौथ के दिन पति भी पत्नी की सुखी दांपत्य की कामना करते हैं, ताकि उनका आगे का पूरा जीवन सुखमय और चांद सा दमकता रहे.

करवा चौथ का हुआ बाजारीकरण- करवा चौथ ने एक अनूठा बाजार विकसित कर लिया है. सालों पहले सादी छलनी में चांद को देख लिया जाता था. कुछ सालों से डिजाइनर छलनियों का ट्रेंड बहुत बढ़ा है. कुछ सालों पहले तक महिलाएं अपने सौन्दर्य के प्रति इतनी सजग नहीं थी. अब करवा चौथ के लिए ब्यूटी पार्लर पर सेवाएं ली जाने लगी हैं. करवा चौथ आते ही महि‍लाओं के सोलह सिंगार से बाजार सज गए हैं. बिंदी से लेकर पायल तक हर टाइप की ज्वेलरी में फैशन का नया ट्रेंड देखने को मि‍ल रहा है. जेवरों में बि‍छि‍या का अपना महत्व होता है. फैशन की बयार में अब टो-रिंग भी शामिल हो चुकी हैं.

बदलाव के दौर में करवा चौथ का व्रत- आज परंपरा में कुछ सुखद परिवर्तन नजर आ रहे हैं. अब नई पीढ़ी के पति, अपनी पत्नी की निष्ठा, समर्पण और प्रेम की कद्र करते हुए स्वयं भी इस व्रत को रखने लगे हैं. इस दिन अब होटलों में भी खास तैयारियां की जाने लगी हैं. अब तो सामूहिक करवा चौथ के भी आयोजन होने होने लगे हैं. यानी करवा चौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का भी प्रवेश हो चुका है.

हर सुहागिन करवा चौथ पर अपने पति का मुखड़ा देखकर ईश्वर से यही दुआ मांगती है कि दीपक मेरे सुहाग का जलता रहे. कभी चांद तो कभी सूरज बनकर निकलता रहे.

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