करके सोलह श्रंगार मनाये करवाचौथ का त्यौहार

करवाचौथ सुहागन स्त्रियों का बहुत महत्वपूर्ण व्रत होता है. करवा चौथ के दिन शादीशुदा महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखती हैं. सुबह सूरज निकलने से पहले पूजा और श्रृंगार किए जाते हैं और फिर सरगी खाई जाती है. सरगी खाने की वो सामग्री है, जो सास की ओर से मिलती है.

शाम की पूजा के लिए महिलाएं खासतौर पर तैयार होती हैं. यह व्रत बारह से सोलह साल तक लगातार हर साल किया जा सकता है. अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन किया जाता है. हां यह भी जान लें कि जो सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं. इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है .

करवाचौथ की पूजन विधि -

1-बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें. इसके बाद इन देवताओं की पूजा करें.

2-करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें. एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें. करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें.

3-सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें. इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों और पति के माता-पिता को भोजन कराएं. भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा दें.

4-सासूजी को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें. यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें. इसके पश्चात स्वयं और परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें.

पूजा में किन चीजो का न करे इस्तेमाल

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