कलेजा फूंक लेते हम

फ़नां हो जाते दुनियाँ से,कलेजा फूंक लेते हम..!! दहक़ते सुर्ख उनके लब़,  कहीं ग़र चूम लेते हम..!  फ़नां हो जाते दुनियाँ से,कलेजा फूंक लेते हम..!! उठाने वाला फिर कोई,  नहीं मिलता अंधेरे में,  उन्हें कल रात बे-परदा,कहीं ग़र देख लेते हम..!! वो अब्बा थे हसीनों के,  गली में जो टहलते थे,  कचूमर ही निकल जाता,पता ग़र पूंछ लेते हम..!! भरी बरसात में मिलनें,  अगर छत पर गये होते,  टपक जाते उसी छत से,जमीं को सूंघ लेते हम..!! अगर होती नहीं "वीरान" उनकी झील सी आँखें,  नया कोई डूब मरने का, ठिकाना ढूंढ लेते हम..!! 

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