कल कल करती बह रही

कल कल करती बह रही कोकील कंठी नद । बून्दों की टकसाल से  आज हुई समृद्ध । पानी पगला जब हुआ पलट गई तकदीर । जैसे वानर हाथ में समा गई शमसीर । धारा ने धारण किया धर्मराज का रूप । तट के घट को बांट दी ठंडी ठंडी धूप । ना नाना का साथ था ना नानी का कथ्य । हमने भी अपना लिए मौसम के सब पथ्य । बिजली चमकी जोर से बजा नगाड़ा साथ । मन मयुरे ने दे दिया तन मयुरी का साथ ।

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