कैसी ईदी मिल रही

कैसी ईदी मिल रही, लोग गंवाते जान। नजरें ईश्वर की झुकीं, शर्मिंदा रमजान।। जरा खोज कर लाइए, इनका ईश्वर कौन। देख तमाशा है धरे, क्यों आखिर वह मौन।। बेच रहे किसको भला, ये अपना ईमान। किसकी नेमत चाहते, कुछ काले शैतान।। मौन क्रूरता देखता, मालिक हो नाराज। उसको भी मरना पड़ा, जिसने पढ़ी नमाज।। हनुमन्थप्पा तारुषी, कभी निरंजन वीर। ढहती निशिदिन जा रही, नीयत की प्राचीर।। मारे जाते क्यों नही,ये जुल्मी तत्काल। ईद दिवाली हो रही, काली होकर लाल।। किस मजहब का है खुदा, क्या ईश्वर का धर्म। किस आयत में हैं लिखे, ऐसे कातिल कर्म।। उछल रहा है चाँद तक, मासूमों का खून। दाग भरा वह चाँद क्या, देगा हमें सुकून??

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