मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में रहने वाले कैलाश गिरि आधुनिकता के दौर में मातृ भक्ति की एक मिसाल हैं। अपनी बूढ़ी मां की इच्छा पूरी करने के लिए वे उन्हें कांवर में बैठाकर अपने कंधों पर लादे तीर्थयात्रा कराते घूम रहे हैं। उनका यह सिलसिला पिछले 20 बरसों से जारी है। जानिए कब शुरू हुआ सफर... - 2 फरवरी 1996 को वे मां कीर्तिदेवी को चारों धाम की यात्रा कराने के लिए कंधों पर कांवर उठाकर घर से निकले थे। - 92 वर्ष की मां को कांवर में बिठाए वे शुक्रवार को ग्वालियर पहुंचे थे। उन्हें अब वृंदावन जाना है। - पांवों में यात्रा की थकान आैर उसके दर्द के बावजूद मां के प्रति उनकी श्रद्धा आैर उनकी इच्छा पूरी करने का उत्साह बरकरार है। - थकान से राहत के लिए वे जब भी कांवर को कंधे से नीचे उतारते हैं तो उसे जमीन पर रखते ही अपनी मां की परिक्रमा करने लगते हैं। - यह सब देखकर लोग उन्हें संत तो कुछ कलयुग के श्रवण कुमार कहने लगे हैं। - कैलाश गिरि अपनी मां कीर्ति देवी को अभी तक चारों धाम के साथ-साथ, नर्मदा यात्रा,आठ ज्योर्तिलिंग की परिक्रमा करा दी है। - अपने बेटे की मातृभक्ति पर 92 वर्षीय कीर्ति देवी कहती हैं- मेरा बेटा तो ईश्वर का वरदान है। - बचपन में कैलाश पेड़ से गिर कर बेहोश हो गया था। तब मैंने प्रभु से मनौती मांगी कि मेरा बेटा अगर ठीक हो जाए,तो वह चार धाम की यात्रा करेगी। - ईश्वर की कृपा से बेटा ठीक हो गया। इसके बाद 24 साल की उम्र में वह मुझे कांधे पर लेकर तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा। - कैलाश कहते हैं- रास्ते में किसी ने घर पर रोका तो ठीक है, अन्यथा सड़क किनारे ही विश्राम कर लेता हूं। पैर छूने लगती है होड़ - कैलाश गिरि की मातृभक्ति की खबर मिलते ही लोगों में उनके चरण स्पर्श करने की होड़ लग जाती है। - वे जिस भी शहर में जाते हैं वहां श्रद्धालु उनके पीछे पीछे चलने लगते हैं। श्रद्धाभाव से कई लोग कैलाश गिरि व उनकी माता के चरण स्पर्श कर रहे हैं। - कैलाश गिरि के मुताबिक उनके पिता व भाई की पूर्व में ही मौत हो चुकी है। यात्रा के समापन को लेकर वे कहते हैं- मां को वृंदावन की यात्रा कराने के बाद ही घर वापस लौटेंगे।