कबतक राह देखूँगा

कबतक राह देखूँगा मैं तेरे आ जाने की? जिन्दगी में मंजिल को फिर से पा जाने की! तड़प रही है जिन्द़गी शाम-ए-तन्हाई में, मदहोशी की चाहत है फिर से छा जाने की!

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