भगवान करें, जुबान पर लग जाये जंग !

इस देश में न तो मुद्दों की कमी है और न ही मुद्दों पर बोलने वाले नेताओं की....। सुलझे सुलझाये मुद्दों को उलझाना तो कोई सीखे....हमारे नेताओं से। ऐसे बोलते है कि बस पूछो ही मत...। लगता है लोग अब इनसे परेशानी का अनुभव करने लगे है और निश्चित ही लोगों के मन और दिल से यह दुआ अर्थात बद्दुआ निकलने लगी होगी कि हे भगवान ! अब तो इनकी जुबान पर जंग लग जायें....! हद हो गई बोलने की....। धर्मान्तरण का मुद्दा छूटे तो बच्चों की संख्या पर आकर टिक जाये, बच्चों से छूटे तो लव जेहाद पर आ जाये और लव जेहाद से छूटे तो पीके पकड़कर बैठ जाये...नहीं तो ऐसे मुद्दे पकड़ लिये जाते है, जो न सिर के होते है और न पैर के....अर्थात बेसिर पैर के....।
दिल्ली में बैठकर मध्यप्रदेश को कोस ले तथा मध्यप्रदेश में बैठकर उत्तर प्रदेश को कोस लें...। अब दिल्ली को ही लें ले.....विधानसभा चुनाव क्या होना है, दिल्ली जुबानी जंग का मैदान बन गई हो जैसे....। दिल्ली, दिल्ली न होकर रण का मैदान बन गई। बची खुची कसर कतिपय मीडिया वाले पूरा कर देते है....बहस जैसे कार्यक्रम आयोजित कर...। ऐसे लड़ते है-ऐसे लड़ते है, लगता है कि एक दूसरे पर हाथ न उठा ले कहीं। वैसे भी तो मुद्दे है कहां, जिन पर कलम चलाई जाये या दृश्यांकित किया जाये, लिहाजा स्थानीय राजनीति को राष्ट्रीय स्तर की राजनीति बना दी जाती है। जिन्हें नहीं लोग जानते समझते थे, वे भी बयानों के कारण आम जनता के बीच ’लोकप्रिय’ हो गये है...। 
वैसे आम जनता को कोई लीजे-दीजै नहीं है क्योकि रोज कुआ खोदना और रोज पानी पीने से फुर्सत मिले तो नेताओं को शाबासी दे कि वाह क्या बोलते है, प्यारे बोलते रहा, परंतु जब मामला अपना हो तो तय है कि ध्यान जाता ही है। बच्चा पैदा करना है तो इनकी सुनकर पैदा करेंगे क्या....चार या आठ....खायेंगे क्या और खिलायेंगे क्या....जिन्होंने सांसारिक मोह माया त्याग दी वे बच्चों की संख्या की पुराण बांच रहे है, जिन्हें राजनीति की रोटी सेंकना होती है वे ’हिन्दुत्व’ के तवे को गर्म करने पर तूले हुये है। केवल भड़काउ राजनीति कर अपना भला देखना छोड़ना तो समझा ही नहीं....। 
 जिनके क्षेत्र कभी सीमित हुआ करते थे बोलने की बीमारी के कारण देश भर में ’लोकप्रिय’ हो चले है। अरे मुद्दे उठाने है तो संसद में उठाओं, जिनसे देश की जनता का भला होता हो, बयानबाजी करना है तो गरीबों की समस्याओं को लेकर करों....लेकिन इसमें भी राजनीति ही करना आदत में शूमार है। चूप हो जाओं, थाम लो जुबान को, वरना यह जनता है, सब जानती है...देखते ही सुनते ही कानों पर हाथ रख लेगी....बोलते रहो फिर अकेले ही.....!

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