जुदाई तो नहीं माँगी थी

तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी, रिहाई तो नहीं माँगी थी मैंने क्या ज़ुल्म किया, आप खफ़ा हो बैठे प्यार माँगा था, खुदाई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी..... मेरा हक़ था तेरी आंखों की छलकती मय पर चीज़ अपनी थी, पराई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी..... अपने बीमार पे, इतना भी सितम ठीक नहीं तेरी उल्फ़त में, बुराई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी..... चाहने वालों को कभी, तूने सितम भी ना दिया तेरी महफ़िल से, रुसवाई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी...

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