भूमि विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन बुलाने पर सरकार ने नहीं किया विचार

भूमि अधिग्रहण विधेयक संसद के आगामी सत्र में पारित हो पाएगा या नहीं कोई नहीं जानता, लेकिन संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शनिवार को कहा है कि विधेयक को पारित करवाने के लिए सरकार ने दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन बुलाने पर कोई चर्चा नहीं की है। नकवी ने कहा, "भूमि विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन बुलाने के विकल्प पर हमने विचार ही नहीं किया।"
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (एनडीए) की सरकार को लोकसभा में तो भारी बहुमत प्राप्त है, लेकिन राज्यसभा में वह अल्पमत में है। राज्यसभा में भाजपा के 47 सदस्य हैं, जबकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के 68 सदस्य हैं। नकवी ने हालांकि कहा कि विधेयक को पारित करवाने के लिए अन्य दलों के साथ बातचीत जारी है। उन्होंने कहा, "हम अन्य राजनीतिक दलों से बात कर रहे हैं और विधेयक को पारित करवाने की कोशिशों में लगे हुए हैं।"
आधिकारिक सूत्रों का हालांकि कहना है कि सदनों की संयुक्त बैठक बुलाना आसान नहीं है, क्योंकि नियमों के मुताबिक किसी विधेयक के पारित न हो पाने पर छह महीने बाद ही इस तरह का एक ही सत्र बुलाया जा सकता है। राज्यसभा सचिवालय के एक अधिकारी ने बताया, "नियमों के मुताबिक, लोकसभा या राज्यसभा में किसी विधेयक के पारित न हो पाने के बाद छह महीने की अवधि के बाद राष्ट्रपति विधेयक पारित करवाने के लिए संयुक्त अधिवेशन बुला सकते हैं, उससे पहले नहीं।"
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता डी. राजा का भी कहना है, "सरकार तब तक संयुक्त अधिवेशन नहीं बुला सकती, जब तक विधेयक राज्यसभा में पारित न हो सका हो और उसके बाद छह महीने बीत चुके हों।" भारतीय राजनीति के इतिहास में अब तक सिर्फ तीन विधेयक ही संयुक्त अधिवेशन में पारित हुए हैं। ये विधेयक हैं दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1961, बैंकिंग सेवा आयोग निरसन विधेयक-1978 और आतंकवाद निरोधक अधिनियम-2002।
सरकार के सूत्रों ने हालांकि बताया कि क्षेत्रीय दलों से इस पर बातचीत चल रही है, जो जरूरत पड़ने पर विधेयक को अपना समर्थन दे सकते हैं। 244 सदस्यीय राज्यसभा में इस विधेयक को पारित होने के लिए साधारण बहुमत अर्थात 122 सदस्यों का समर्थन चाहिए।

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