जीवन को समझ पाते नही हैं

मुहब्बत का वादा दिल के पार निकला जैसे कोरे कागज का अखबार निकला . दूर से दिखा निखरता हुआ सौंदर्य रुप  ताजे फूलों से किया हुआ श्रृंगार निकला . फेंक दिये जिसे सागर का जीव जानकर वह कान्तिमयी मोतियों का हार निकला . जिस जीवन को समझ पाते नही हैं लोग वही जीवन प्रकृति का उपहार निकला . जो गिरा बार-बार तुनकमिजाज घोड़े से सँवरकर वही एक कुशल सवार निकला . दृढ़ इच्छाओँ से जो बढ़ता ही गया आगे वही देश का एक लौह सरदार निकला . मित्रता में स्वार्थ घुलता चीनी की तरह वो तो किसी और का तलबदाार निकला . जो नाम वास्ते काम करता नही 'प्रकाश' वहीं गुमनामी सबका मददगार निकला

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