इसी उम्मीद पर हम जल के भी शिकवा नहीं करते। गुलों की आग हो जाती है कम "आहिस्ता-आहिस्ता... इरादे नेक हों तो नेक सोहबत भी जरूरी है। बहक जाते हैं बन्दों के कदम आहिस्ता-आहिस्ता..