जलेबी खाते हुए ही संत बन गए थे तरुण सागर महाराज!!

नई दिल्ली. क्रांतिकारी संत के नाम से मशहूर जैन मुनि तरुण सागर जी महाराज का शनिवार तड़के सुबह 51 साल की उम्र में निधन हो गया. तरुण सागर महाराज ने पूर्वी दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के राधापुरी जैन मंदिर में सुबह 3 बजे अंतिम सांस ली. तरुण सागर अपने विवादित और कड़वे प्रवचन के कारण देशभर में मशहूर थे. उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी राय रखी है. आमतौर पर कोई भी सन्यास लेने के लिए काफी ज्यादा विचार विमर्श करता है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि तरुण सागर तो जलेबी खाते-खाते ही संत बन गए. हालांकि इन बातों में कितनी सच्चाई है इसका कोई सुबूत नहीं है लेकिन खुद तरुण सागर ने मीडिया से बातचीत के दौरान इस किस्से के बारे में बताया था.

2 से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों के लिए मुनि श्री तरुण सागर ने कही थी यह कड़वी बात

जलेबी खाते-खाते कैसे बने मुनि जब तरुण सागर महाराज छठी कक्षा में पढ़ते थे उस दौरान वो जलेबी खाते हुए सन्यासी बन गए थे. इस बारे में बात करते हुए तरुण सागर महाराज ने कहा था कि 'बचपन में उन्हें जलेबी खाने का बहुत शौक था. स्कूल के पास ही एक होटल पड़ता था जहां बैठकर वो जलेबी खाते थे. एक दिन जब वो उस होटल में बैठे तो पास में ही आचार्य पुष्पधनसागरजी महाराज का प्रवचन चल रहा था. आचार्य पुष्पधनसागरजी महाराज कह रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो... यह बात जैसे ही उनके कानों में पड़ी फिर उन्होंने भी संत बनने की परंपरा को अपना लिया.

51 वर्ष की उम्र में जैन मुनि तरुण सागर महाराज का निधन

तरुण सागर महाराज का जन्म साल 1967 में मध्य प्रदेश के दमोह के एक गांव में हुआ था. उनका असली नाम पवन कुमार जैन था. तरुण सागर ने 8 मार्च 1981 को 13 वर्ष की उम्र में संत बनने के लिए अपना घर छोड़ दिया था जिसके बाद उन्होंने 20 साल की दिगंबर मुनि दीक्षा ली थी. तरुण सागर जी महाराज ने 'कड़वे वचन' नाम से एक किताब भी लिखी थी जिसमें उन्होंने कड़वी भाषा का इस्तेमाल किया था.

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