जगन्नाथ रथयात्रा: मंदिर में विराजमान अधूरी मूर्तियों का रहस्य

जगन्नाथ रथयात्रा से पहले भगवन के मंदिर को खूब सजाया जाता है. इस प्राचीन मंदिर का अपना इतिहास है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी. मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी. कड़ी तपस्या करने वाले राजा को भगवान विष्णु ने बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा. उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये.

राजा ने ऐसा ही किया और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया. उसके बाद विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में एक माह में मूर्ति तैयार करने के काम में लगे मगर शर्त यह थी की कोई भी एक माह तक उस कमरे में नहीं आएगा जहा हम मूर्ति बना रहे है. मगर 29 वे दिन उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका तो वृद्ध कारीगर ने राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे. मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब भगवान की इच्छा से हुआ है.

मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं. तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं और युगों युगों से पूंजी जा रही है. 

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