जाओ अब आराम करो

हम उन्हें वो हमें भुला बैठे दो गुनहगार ज़हर खा बैठे

हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठे तीर मारे थे तीर खा बैठे

आंधियो जाओ अब आराम करो हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे

जी तो हल्का हुआ मगर यारो रो के हम लुत्फ़-ऐ-गम बढ़ा बैठे

बेसहारों का हौसला ही क्या घर में घबराए दर पे आ बैठे

जब से बिछड़े वो मुस्कुराए न हम सब ने छेड़ा तो लब हिला बैठे

हम रहे मुब्तला-ऐ-दैर-ओ-हरम वो दबे पाँव दिल में आ बैठे

उठ के इक बेवफ़ा ने दे दी जान रह गए सारे बावफ़ा बैठे

हश्र का दिन है अभी दूर 'ख़ुमार' आप क्यों जाहिदों में जा बैठे

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