जामों की शराब सी लगती है

मयकश के जामों की शराब सी लगती है  जिन्दगी अब मुझको खराब सी लगती है जिसको भी देखो लूटने को बेचैन है  जिन्दगी भी हुश्न-ओ-शबाब सी लगती है यूं तो रोज इबादत करता हूं उस खुदा की, फिर भी उनकी बंदगी अंजान सी लगती है जिन्दगी की ये पहेली कुछ अजीब सी है, सवाल पे सवाल, बेहिसाब सी लगती है कुसूर रिस्तों का है या खता मेरी है  की हर रिस्ता भी एक नयी पहचान सी लगती है बहुत सवाल है उनकी आँखों मे, मेरी सूरत बस अब उनके जवाब सी लगती है

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