इस दिल का क्या करें

दिल ही न मानता है, इस दिल का क्या करें मिटने को ठानता है हम इस दिल का क्या करें खंजर छुपाए हाथ में मीठी जुबान है अपना ही हो अगर कोई क़ातिल तो क्या करें जिनसे वफा का नाम था जिंदा जहान में हों बेवफा अगर वही संगदिल तो क्या करें मकतल में सज़ा मौत की इस बेगुनाह को /इजलासे सज़ा मौत मुकर्रर हुई जिसे फिर भी बची है जिंदगी फ़ाज़िल तो क्या करें राहे-ए-फ़ना-ए-इश्क़ के हम रहगुजार हैं मंजूर-ए-खुदा मौत ही हासिल तो क्या करें ------

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