इन्तंजार के क्षण है लम्बे

इन्तंजार के क्षण है लम्बे,कटे न कटे, कब तुम आओगे प्रभु,ख्याल हटे न हटे, प्यास अब बढ़ती ही जाये,तड़प घटे न घटे, दुख के बादल बढ़ते ही जाये,ये छटे न छ्टे, कितना भी इन्तंजार करवालो प्रभु, हम भी पीछे अब हटे न हटे इन्तंजार जिसका है करना वो तो मिला ही है, यह बात तो है सुनी हुई जिसको प्यास है लगी वो खुद ही सागर है, यह बात भी सतिगुरु ने कही इतना पढ़ा,इतना सुना,फिर भी न मानूगा, जानूगा तो ही मानूगा जो कहते है सतिगुरू मेरे,वो बात तो सच्ची है, मुझे अभी 'अनुभव' नही हो रहा, लगता है प्यास मेरी ही कच्ची है न जाने कितनी बार तेरी चोखट पर, हाथ लगा कर आया हूँ पर दुर्भाग्य है मेरा तेरे सागर मे, अभी भी डूब न पाया हूँ तेरा इन्तंजार भी आनंद से भरा है, तेरा मिलना कैसा होगा कृपा करो सतिगुरू मेरे यह इन्तंजार, कब खत्म होगा ।

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