मकानों के इस दौर में... इंसानों की ख़बर नहीं... के ज़िस्मों के इस ढ़ेर में... रूहों की ख़बर नहीं ॥ क्या करें हम ज़िक्र अब... अपने तकल्लुफ का... के दरारों के इस दौर में... रिश्तों की कद्र नहीं ॥