पाक-बांग्लादेश से यहाँ मात खाता है भारत

भारत में एक जुमला आज भी वक़्त बेवक्त काफी उछाला जाता है, कभी यारों के बीच कभी गैरों के बीच, कभी किसी मसले में तो काफी किसी मजमें में। जुमला कुछ ऐसा है की 'पाकिस्तान चले जाओ’ वहीं पूर्वोत्तर भारत की अगर बात करें तो 'बांग्लादेश चले जाओ’ का जुमला काफी सुनने को मिलता है। सुनने में ज़रूर ये मज़ाकिया लगता है मगर वास्तविकता में यह जुमला एक गाली का ही रूप है।

आमतौर पर ये कहावत उनके लिए कही जाती है जो अपनी हमज़मीन से वफा ना रखकर गैर वतन के लिए हमदर्दी दिखाते हैं। ये तो आप भी भली भांति जानते हैं की ज़मीन-ज़मीन में रहने पलने में फर्क होता है, ज़मीन ज़रूर एक है मगर सरजमीं बदलने पर खान-पान, रहन-सहन, दवा-दारू सब में फर्क आ ही जाता है। देश और परदेश इसी एक मामूली फर्क से ही तो तय होते हैं।

अब अगर कोई आपसे कहे की यार तुम 'पाकिस्तान चले जाओ' या कहे की 'बांग्लादेश चले जाओ' तो ज़रूर ये बात हमें भीतर तक चुभ जाएगी, हमारे ज़मीर को झंकझोर देगी। संभवतः कहने वाले को आप खुद ही वहीं के वहीं पाक-बांग्लादेश के दर्शन करा दें पर यदि हम तुलनात्मक्ता की नज़र से देखें तो परिणाम काफी चौकाने वाले हैं।

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