सूर्य को जल चढाने का महत्व

सूर्य सभी ग्रहों का स्वामी हैं. सूर्य से ही सारा जगत प्रकाशमान रहता है और सूर्य ही हमारे जीवन के सारे अन्धकार दूर होते हैं. सूर्य को अर्घ्य देना प्राचीन काल से ही चला आ रहा है. हमारे धर्म शास्त्रों में भी सूर्योपासना को सर्वरोगों को हरने वाली कहा गया है। हिंदू संस्कृति में जल चढ़ाना सामने वाले के प्रति श्रद्धा और आस्था प्रकट का प्रतीक है। 

जहां स्नान के लिए नदी या सरोवर उपलब्ध हैं, वहां नदी में ही नहाने के बाद सूर्य को अर्घ देते हुए आज भी देखा जा सकता है। सूर्य के नामो का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ देने का विधान है। शास्त्रनुसार प्रात: पूर्व की ओर मुख करके सूर्य को अर्य देना चाहिए, जबकि सायं पश्चिम की ओर।

मान्यताओं की माने तो सूर्य को जल अर्पण करे बिना भोजन ग्रहण करना सबसे बड़ा पाप है. सूर्य को जल अर्पण करते वक़्त जलधारा से सूर्य की किरणे टकराकर आपके शरीर को स्पर्श करती हैं और आपकी सभी समस्याओं को ख़त्म करती हैं और साथ ही आपके सारे रोग को समाप्त कर आपको ऊर्जावान बनती हैं. जो जल अर्पण करते वक़्त सूर्य की तरफ देखता है उसकी आँखों की रौशनी हमेशा बरकरार रहती है.

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