मां भद्रकाली को प्रसन्न करने के लिए चढ़ाए जाते हैं घोड़े

हरियाणा। यूं तो कण - कण में ही शक्ति का वास है। कहा जाता है कि आदि शक्तियों ने ही सृजन, प्रकृति के पालन और अपने नियमों के अनुसार प्रकृति में संहार करने के लिए तीन स्वरूपों में स्वयं की शक्तियों को फैलाया। इसके बाद प्रजापालक पिता ईश्वर ने समय - समय पर परिस्थितियों के अनुसार अपने स्वरूपों का सृजन किया। जब धरती पर पाप बढ़ने लगे। तो शिव की शक्ति से मां भद्रकालि ने अपना स्वरूप लिया और धरती पर संतुलन स्थापित किया। मं भद्रकालिका को सती स्वरूपा भी कहा जाता है। पुराणों में वर्णित है कि माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ को ध्वस्त किया था और खुद की आहूति दे डाली थी।

जिसके बाद भगवान शिव माता के शव को लेकर सभी ओर भटक रहे थे। भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के निवेदन पर माता के शरीर को विभिन्न भागों में विभक्त किया। माता के शरीर के ये भाग धरती पर जहां - जहां पड़े वहां शक्ति जागृत हो गई और से सिद्ध शक्ति पीठ कहलाए। कहा जाता है कि माता का ऐसा ही शक्तिपात हरियाणा के प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरूक्षेत्र के रूप में माना जाता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि यहां माता का दायां गुल्फ अर्थात घुठने के नीचे का भाग गिरा था। जिसके बाद यहां शक्ति जागृत हो गई। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन ने यहां पूजन कर माता की सेवा में श्रेष्ठ घोड़े अर्पित करने की बात कही थी।

जिसके बाद पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने यहां घोड़े अर्पित किए। इसके बाद से ही यहां आने वाले श्रद्धालु माता के चरणों में चांदी, सोने और मिट्टी के घोड़े अर्पित करते हैं। माता के दरबार में श्रद्धालु चुनरी और सौहल श्रृंगार की सामग्री अर्पित करते हैं और यहां से माता को अर्पित किए हुए कुमकुम में से थोड़ा सा कुमकुम लेकर जाते हैं। यहां माता को नारियल चढ़ाने का विधान है। पुराणों में वर्णन है कि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी का मुंडन संस्कार यहीं हुआ था। यहां पर एक तालाब भी है। जिसके एक ओर श्री तक्षेश्वर महादेव प्रतिष्ठापित हैं। यहां शिव और शक्ति का जागृत वास है। यहां मनोकामना के लिए कलेवा बांधा जाता है तो दूसरी ओर चैत्र और अश्विन नवरात्रि में माता की विशेष आराधना की जाती है।

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