कुंडली का होता है शादी में अहम योगदान

कुंडली का हिंदू धर्म में एक अहम रोल होता है. शादी होने से पहले लोग अक्सर कुंडली का मिलान अवश्य करते हैं जिससे वह वर और वधु के ग्रह-नक्षत्रों का मेल करते हैं और जानते है कि उन दोनों का आने वाला वैवाहिक जीवन कैसा होगा. हालांकि, कई धर्म और जातियों में कुंडली का मिलान नहीं किया जाता है और लोग आपसी पसंद और चयन से ही विवाह कर लेते हैं. कई बार मन में यह सवाल उठता है कि आखिर कुंडली को मिलाया क्यों जाता है और क्या इसके मिलाने से वाकई में कोई फर्क प़डता है.

कुंडली को हिंदू धर्म में शादी का पहला चरण माना जाता है जिसमें भावी वर और वधु की जन्मकुंडली को बनवा कर उसे आपस में मिलाया जाता है कि उनके कितने गुण रहे हैं. इससे उनके वैवाहिक जीवन का भी अंदाजा लगाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार, पुरूष और महिला की प्रकृति, शादी के बाद परिवर्तित हो जाती है जो आपस में एक-दूसरे से ज्यादा प्रभावित होती है. यही कारण है कि कुंडली को मिलाकर जान लिया जाता है कि उन दोनों की आपस में कितनी पटेगी.

कुंडली में गुण और दोष होते हैं जिन्हे शादी से पहले मिलाया जाता है ताकि यदि कोई गंभीर दोष जैसे- मंगली आदि निकलता है, तो रिश्ते को आगे न बढाया जाएं. वरना उन दोनों को समस्या हो सकती है. कुंडली में कुल 36 गुण होते है जिनमें से कम से कम 18 गुण मिलने पर ही शादी होती है. इससे कम गुण मिलने पर पंडित शादी करने से इंकार कर देते हैं. भावी वर और वधु का व्यवहार, प्रकृति, रूचि और क्षमता के स्तर को जानकर आपस में कुंडली के माध्यम से मिलाया जाता है. अगर दोनों के इन गुणों में दोष पाया जाता है तो शादी नहीं की जाती है.

 

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