रेप पीड़िता की चुप्पी यौन संबंध बनाने की सहमति का सबूत नहीं : हाईकोर्ट

नईदिल्ली। बलात्कार पीड़िता की चुप्पी को यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने के सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है। आरोपी के पास बचाव की दलील का कोई आधार नहीं है। ऐसे में इस दलील को खारिज किया जाता है कि घटना को लेकर पीड़िता की चुप्पी यौन संबंध बनाने हेतु उनकी सहमति का सबूत है। यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी एक सुनवाई में दिया। दिल्ली उच्च न्यायालय एक गर्भवती महिला से बलात्कार किए जाने के एक मामले की सुनवाई कर रहा था।

इस दौरान न्यायाीध ने आरोपी मुन्ना 28 वर्ष की सजा को बरकरार रखा। उसे 10 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल ने की थी। उन्होंने निचली अदालत के वर्ष 2015 के निर्णय को बरकरार रखा। हालांकि उन्होंने निचली अदालत के निर्णय को दे खते हुए कहा कि उक्त महिला जो पीड़िता है उसके बयान में विसंगतियां हैं ऐसे में मुन्ना को अपहरण के अपराध में बरी किया जाता है।

यह आरोप लगाया था कि आरोपियों ने उसे देह व्यापार के धंधे में धकेलने की कोशिश की लेकिन हाई कार्ट ने मुन्ना और उसके सहआरोपी साथी सुमन कुमार को इस आरोप से भी बरी करने के फैसले को बरकरार रखा। महिला के अनुसार, वह दिसंबर 2010 में उत्तर प्रदेश से दिल्ली आई थी और उसकी मुलाकात मुन्ना और उसके साथी कुमार से हुई जिन्होंने उसे काम दिलाने का कथित तौर पर झांसा दिया। उसने आरोप लगाया कि मुन्ना उसे हरियाणा में पानीपत ले गया जहां उसे करीब दो महीने तक एक फ्लैट में बंद करके रखा गया और बार - बार उसके साथ बलात्कार किया गया।

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