एक कुता भटक रहा रोटी की तलाश में, हर जगह हर घर से फटकारा जाता हर कोई मार भगाता गलियों मे खाता धक्के, कई से भी न उसे पुचकारा जाता पर उसी जैसा भाई उसका देखने में, पर गले में पट्टा उसके पहनाया जाता अच्छे मकानों बगलों में ले जाया जाता, अच्छे अच्छे पकवान उसे खिलाया जाता शेम्पू से रोज नहलाया जाता कारों में साथ बिठाया जाता, रोज सुबह शाम सैर में साथ धुमाया जाता आखिर क्या फर्क है दोनो में, सिर्फ पट्टे का सारा खेल है पट्टा बताता यह हो गया किसी का, अवारा कुत्तो से न इसका अब मेल है इसने भी तो आखिर तपस्या की, सारे रिश्ते-नातो को इसने तोड़ा है मालिक माना है बस एक को, अब एक से नाता इसने जोड़ा है