कुछ जख़्म जो नासूर भी बन सकते हैं..!! आपके लिये..! जरा सी बात पर तूफान मचा देते हैं.. सरासर इल्जाम गैरों पर लगा देते हैं.. नाराज़गी लिखके खुद जताते लेकिन, ख़त कासिद ने दिया होगा बता देते हैं.. हम शाख़ पे फूलों की तरह खिलते हैं.. जानें क्यों लोग हमें तोड़ मसल देते हैं.. हमारे हुस्न के काँटे क्या उन्हें चुभते हैं.. या हमारी खूबसूरती से लोग जलते हैं.. मासूम कह कर मेरा जिस्म चूमने वाले, मेरी मस्ती को ही पीकर के मिटा देते हैं.. लुट गये हम तो "वीरान" भरोसा करके, करते इश्क़ मगर हस्ती को मिटा देते हैं..