हर तरफ भीड़ ही भीड़ लगने लगी, दुनियांदारी मुझे अब बोझ लगने लगी सोऐ सोऐ से है सब लोग यहा, झुठे सपनो में खोऐ है लोग यहा जाने कब खुलेगी झ्नकी आखँ यहा, रह जायेगा इनका सब,जहां का तहां फिर भी परवाह नही है इस बात की, खत्म हो रही जिदंगी,बात कुछ रात की कुछ तो जागो मेरे हमदम,मेरे साथियो, बात वहा की करे,जहां जाना साथियो हमने कुछ भी यहां पर न पाया साथियो सबने दुख कष्ट ही यहा झेले है साथियो मैं भी भटका था इस जहां मे बडा, पैसा सब कुछ ही लगता था मुझको यहा एक ठोकर ने सतिगुरु की हिला है दिया, गहरी नीदं से मुझको ,जगा है दिया अब दुबारा न इस जहांन मे हम आयेगे, हम तो सतिगुरू की गोद मे बैठ जायेगे।